
मकान में लगाए गई तस्वीरों, रंगों तथा पड़ने वाली रोशनी का असर या प्रभाव
कहा जाता है कि जिस तरह से व्यक्ति देखता है, सुनता है तथा जिस तरह से करता है उससे उस व्यक्ति पर भी वैसे ही संस्कार का असर होता है। जिस तरह से संस्कार का असर होता है वह व्यक्ति भी उसी तरह के काम करने के लिए प्रेरणा प्राप्त करता है। जिस तरह के मन में विचार उत्पन्न होते हैं, उसी तरह के ही काम को व्यक्ति करता है। जिस तरह का काम व्यक्ति करता है उससे फिर उसी तरह के ही संस्कार व्यक्ति के दिल में पैदा हो जाते हैं। बार-बार एक तरह के ही संस्कार से फिर वैसा ही स्वभाव पैदा हो जाता है। जिस तरह के तस्तवीर, रंग तथा रोशन दान का घर में उपयोग किया जाता है उसी प्रकार से रोशनी का प्रभाव आपके घरों में भी पड़ता है।
व्यक्ति की जीवात्मा के सहायक माने जाने वाले मन, दिमाग तथा दिल हमेशा ही (सोते हुई की स्थिति में) जागते रहते हैं। इस तरह से होने पर व्यक्ति को यह भी मालूम नहीं चल पाता है कि देखने व सुनने से दिल हर बार किस तरह की बातों को ग्रहण कर रहा है। अगर देखा जाए तो स्पष्ट बात तो यह है कि दिल ने जाने-अनजाने में जो कुछ भी ग्रहण किया है उसी के अनुसार ही व्यक्ति उसी तरह के काम को करने के लिए मजबूर हो जाता है।
तस्वीरः-
तस्वीरों को बनाना किसी भी कलाकार के लिए उसकी कल्पना व सृजनशीलता की पहचान माना जाता है। तस्वीर को बनाते समय चित्रकार ने जिस तरह के भाव, रंगों के माध्यम से जो भर दिए, उसी तरह के ही भाव वह तस्वीर में हमेशा ही छोडता चला जाएगा। यह एक तरह की विशेषता है, जो कि सभी तरह के कलाकारों को मिलती है।
देखी गई तस्वीर आदि का व्यक्ति के दिल पर बहुत ही ज्यादा असर (प्रभाव) पड़ता है। एकाग्रता से देखने पर तो तस्वीर के हाव-भाव विषय वस्तु व उनके रंगों से पैदा होने वाले असर तो व्यक्ति के दिल पर बहुत ही गहरे अंकित हो जाते हैं। इसलिए मकान में अच्छी तस्वीरों को लगाना चाहिए। गलत असर डालने वाली तस्वीरों को नहीं लगाना चाहिए जैसे कि लड़ाई करती हुई तस्वीर, दो व्यक्तियों को आपस में लड़ाई करते हुए, घायल, पीड़ादायक व्यक्ति, पागल, नंगी या आधी नंगी स्त्री की अथवा पुरुष के बहुत ज्यादा कामुक तस्वीर, हिंजड़े, आग, पशु-पक्षियों में निषिद्ध उल्लु, गिद्ध, सर्प, सियार, हाथी, घोड़ा, सभी देवताओं व परियों या अप्सरा, खराब चेहरा अथवा इस तरह की ही किसी विषय वस्तु पर बनी हुई तस्वीरों को अपने रहने वाले मकान आदि में कभी-भी नहीं लगाना चाहिए।
अगर आप मकान में तस्वीर आदि लगाना चाहते हैं, तो आप ॐ, स्वास्तिक, देवताओं के धन के स्वामी कुबेर, धन की देवी लक्ष्मी मां, शिव भगवान की सवारी नंदी, गाय-बछड़ा, फूलों की बहुत ही लुभावनी तस्वीर, गुलाब, कमल, डांस या नृत्य करती हुई स्त्रियां, अच्छा तथा सुंदर स्वस्थ बच्चा, अच्छे दिखाई देने वाले पक्षी जैसे कि- मोर, बत्तख तथा अपने कुल के देवताओं की तस्वीर आदि को लगा सकते हैं। इसके अलावा प्रेरणा देने वाली तस्वीरों को लगाना चाहिए। जिससे कि मन की आत्मा को सदगुणों की प्राप्ति हो सके।
रोशनी तथा रंग-
हमारे सौरमंडल में सूरज की गर्मी तथा उसकी रोशनी को मुख्य स्रोत माना गया है। सूरज के उदय होने से लेकर दोपहर तक सूरज से अल्ट्रावायलेट किरणें (सुख देने वाली किरणें) प्राप्त होती है, जो कि जीव जगत के लिए बहुत ही ज्यादा लाभदायक मानी जाती है। वनस्पति जगत सूरज की गर्मी तथा उसकी रोशनी की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा अपना खाद्य (कार्बाहाइड्रेट) बनाकर प्राण वायु ओषजन (आक्सीजन) को छोड़ता है। भगवान की व्यवस्था भी बहुत ही अजब तरीके की है जिसकी जीव जगत को जरुरत होती है। आक्सीजन वनस्पति संसार को देता है, जिसकी वनस्पति जगत को जरूरत होती है। कार्बन डाइआक्साइड जीव जगत देता है, यह दोनों ही जगत परमात्मा की ही बनाई गई सृष्टि से पूर्णता को प्राप्त होते हैं और भगवान ने यह संसार जीव के रूप में प्रजा के लिए बनाया है।
शुद्धम् अपापविद्धम् कविः मनीषी स्वयंभू परिभू।
व्यदधाश्वशातीभ्य समाभ्यः।।
इसके लिए रोशनी को जीवन का मूल आधार माना गया है। रंग प्रकाश में ही अदृश्य रूप से अंदर छिपा हुआ होता है। संसार के प्राचीन समय से ही भरत खंड के ऋषियों व विज्ञानियों को प्रकाश के अंदर ही छिपे हुए सात रंग तथा सभी तरह के रंगों की तरंग व उनके अंदर छिपे हुए अलग-अलग तरह की ऊर्जाओं के बारे में भी मालूम था और यह ज्ञान अलग-अलग वैदिक साहित्य में यहां-वहां हर जगह लिखा हुआ है। इतनी विशद व बारीकी से विवेचना विज्ञान आज तक भी नहीं कर पाया है। परंतु आज के वैदिक विद्वान भी किन्ही प्रयोगिक तर्क के आधार पर वैदिक साहित्य के परिणामों को आधुनिक विद्वानों के सामने प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं। परंतु आधुनिक विज्ञान जब किसी ठोस परिणाम पर पहुंचता है तो वह वैदिक ज्ञान की पुष्टि ही करता है, यह बात प्रबल है।
रंग रोशनी के अंदर ही छिपा हुआ होता है, तब ही तो रंग का अपना असर विशेष माना जाता है। किसी भी सतह पर जब रोशनी की किरणें पड़ती है तो सतह उस रोशनी को सोख लेती है, जिस रंग तंरग को वह परावर्तित करती है सिर्फ वह ही दृश्य है। इस रोशनी व रंग का बहुत ही ज्यादा संबंध होता है और व्यक्ति के दिल पर इसका बहुत ही ज्यादा तथा गहरा असर पड़ता है। इसलिए हो सके तो अपने मकान के अंदर दूधिया रंग का प्रकाश ही रखना चाहिए।
मकान की अभिमुखता तथा रंग का चुनाव-
वास्तु-विद्वानों ने रंग के पडऩे वाले असरों (प्रभावों) का किसी दिशा विशेष के अनुसार व्यक्ति पर कितना असर पड़ता है उसके बारे में वास्तुशास्त्रों के अंदर भी बताया गया है। मकान की अभिमुखता के आधार पर भी रंगों का चुनाव किस तरह से होना चाहिए, इसके बारे में बताया गया है जैसे किः-
रंग | दिशा |
सफेद | पूर्व दिशा तथा वायव्यमुखी मकानों के लिए। |
हरा | उत्तराभिमुख, आग्नेय कोण तथा नैऋत्य दिशा के मकानों के लिए। |
रक्तिम, नारंगी अथवा गुलाबी | दक्षिणाभीमुख। |
नीला, आसमानी अथवा फिरोजी | पश्चिमाभिमुख। |
वास्तु शास्त्र और वास्तुशास्त्र टिप्स इन हिंदी
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